Monday, July 27, 2015

Ashaar ...

जुबाँ जब बेबाक हो जाती है।
पहले खुदपे सफ्◌़फ़ाक हो जाती है।। (सफ़्फ़ाक - िनष्ठुर)
जलाती है बिस्तयाँ जो लकड़ी।
वो खुद भी खाक़ हो जाती है।।
© बख़्त फ़क़ीरी

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