माँ रातों में मुझको, बच्चों की चीख सुनाई पड़ती।
कोढ़ी हाथों से मागीं, भीख सुनाई पड़ती है।
मैं पाषाण हृद्य से, गीत नहीं गा सकता माँ।
कोढ़ी हाथों से मागीं, भीख सुनाई पड़ती है।
मैं पाषाण हृद्य से, गीत नहीं गा सकता माँ।
बिखरे शब्दो में, संगीत नहीं ला सकता माँ।।
मुझको हर अबला की, आँखें पुकारा करती हैं।
मेरे पैरूष को खूब िधक्कारा करती हैं।।
मुझको सन्नाटे में भी शोर सुनाई पड़ती है।
वो रोती बच्ची हर ओर सुनाई पड़ती है।।
मुझको हर अबला की, आँखें पुकारा करती हैं।
मेरे पैरूष को खूब िधक्कारा करती हैं।।
मुझको सन्नाटे में भी शोर सुनाई पड़ती है।
वो रोती बच्ची हर ओर सुनाई पड़ती है।।
शांति वार्ता की झूठी ये बोल बदलने आया हूँ
माँ मैं दुनिया का सम्पूर्ण भूगोल बदलने आया हूँ।
(To b cntnd..- © बख़्त फ़क़ीरी)
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