Monday, July 27, 2015

Kadwahaten ...

मुख्यमंत्री जी को सबने, अकड़ते हुये देखा है।
नहीं िकसी ने बच्चों को, िठठुरते हुये देखा है।।

यहाँ रजाईयों में िलपटा है, शाह मुल्क का।
उसने नहीं बहनों को, ठंढ से मरते हुये देखा है।।

कड़वाहट कम नहीं होती, अजब मजबूरी है मेरी।
मैंने बेकफन लाशों को जलते हुये देखा है।।

ये नया बावर्ची है, मसाला बहुत डालेगा।
मैंने इसे  िसयासी सपनों  तलते हुये देखा है।।

जी मैं शाहजहानाबाद हूँ , मैं बयान देती हूँ।
हर नयी सुबह की धूँध, आँख मलते हुये देखा है।। - © बख़्त फ़क़ीरी "Desh Ratna

No comments:

Post a Comment